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तभी तुमने अपनी भीगी हुई चुनरी मेरे गर्म माथे पर रख

तभी तुमने अपनी भीगी हुई चुनरी मेरे गर्म माथे पर रख दी थी...मुझे बुखार नही था जान वह ताप था तुम्हारे प्रेम का जिसमें मैं  तप रहा था ! तुम्हारी नर्म हाथों की ठंडी हथेलियां मेरे गालों पर रेंगती तो मेरे दिल में एक हलचल ही सी हो जाती ...तुम्हारी सागर सी गहरी आँखें मुझे तुम्हारी ओर  खींचती चली जाती मानो वक्त ठहर सा गया हो....


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©Ashutosh jain आज भले ही मैं चारदीवारी में कैद हूं लेकिन मेरा मन मुक्त है , स्वतंत्र है !इस संसार के तमाम झंझटों से दूर मेरा मन बाहर हो रही बारिश की बूंदों की आवाज़ में कहीं खोया हुआ है ! कमरे में पलंग के सामने खिड़की के बगल में रखे शेल्फ कुछ किताबें हैं उनमें कुछ क़िरदार हैं जिनसे मुझे मोहब्बत है कुछ ऐसी जैसे ये मेरे जीवन के पिछड़े हुए पहलू हैं...इन किरदारों के पास से जो गुजरती हुई  खिड़की है खिड़की पर बूंदे हैं उन बूंदों के पार मुझे दो परछाइयां नज़र आ रही है ...उन परछाइयों में मुझे तुम्हारी झलक दिखती है .. तुम्हें याद है ऐसी ही एक शाम थी तुम घर से चुपके से मुझसे मिलने आई थी ..तुम पूरी भीग चुकी थी ...लेकिन तुमने कुछ कहा नहीं कहा तो मैंने भी कुछ नहीं था ..लेकिन हमारे बीच कुछ था जो बात कर रहा था ...शायद वही प्रेम था...तभी तुमने अपनी भीगी हुई चुनरी मेरे गर्म माथे पर रख दी थी...मुझे बुखार नही था जान वह ताप था तुम्हारे प्रेम का जिसमें मैं तप रहा था ! तुम्हारी नर्म हाथों की ठंडी हथेलियां मेरे गालों पर रेंगती तो मेरे दिल में एक हलचल ही सी हो जाती ...तुम्हारी सागर सी गहरी आँखें मुझे तुम्हारी ओर  खींचती चली जाती मानो वक्त ठहर सा गया हो....ना जाने कब तुम सीने लिपट गई ... आँखें तो मेरी भी भर आई थी ना जाने क्यों कह ना सकी !
तुमसे कहा था ना ये नदी  और ये ढलती शाम हमारे प्रेम का सबूत है !
जब से तुम गई हो ये बारिश ये नदी मुझे पल पल हमारे प्रेम का अहसास कराते हैं.. तुम्हें दोष देना ठीक नही होगा ...मुझे याद है तुम्हें कितना तड़पी थी उस दिन चीखी थी चिल्लाई थी...कितने घाव थे तुम्हारे मन पर जो आज तक  नही भर पाए ...
मैं जानता हूं तुमने मुझे बचाने के लिए अपने आप को मुझसे दूर किया ...
लेकिन मन के घाव आंसुओं से भरे जाते हैं दूर रहने से नहीं ऐसा तुम ही तो कहा करती थी...तुम्ही तो कहती थी प्रेम निभाना कोई तुमसे सीखे ...
लेकिन आज मैं कहता हूं प्रेम करना कोई तुमसे सीखे ...जो आज भी मेरी आंखों में मोती बनकर आ जाती हो...तुम जहां भी अपना ख्याल रखना ...
तुम्हारा अभागा प्रेमी....
तभी तुमने अपनी भीगी हुई चुनरी मेरे गर्म माथे पर रख दी थी...मुझे बुखार नही था जान वह ताप था तुम्हारे प्रेम का जिसमें मैं  तप रहा था ! तुम्हारी नर्म हाथों की ठंडी हथेलियां मेरे गालों पर रेंगती तो मेरे दिल में एक हलचल ही सी हो जाती ...तुम्हारी सागर सी गहरी आँखें मुझे तुम्हारी ओर  खींचती चली जाती मानो वक्त ठहर सा गया हो....


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©Ashutosh jain आज भले ही मैं चारदीवारी में कैद हूं लेकिन मेरा मन मुक्त है , स्वतंत्र है !इस संसार के तमाम झंझटों से दूर मेरा मन बाहर हो रही बारिश की बूंदों की आवाज़ में कहीं खोया हुआ है ! कमरे में पलंग के सामने खिड़की के बगल में रखे शेल्फ कुछ किताबें हैं उनमें कुछ क़िरदार हैं जिनसे मुझे मोहब्बत है कुछ ऐसी जैसे ये मेरे जीवन के पिछड़े हुए पहलू हैं...इन किरदारों के पास से जो गुजरती हुई  खिड़की है खिड़की पर बूंदे हैं उन बूंदों के पार मुझे दो परछाइयां नज़र आ रही है ...उन परछाइयों में मुझे तुम्हारी झलक दिखती है .. तुम्हें याद है ऐसी ही एक शाम थी तुम घर से चुपके से मुझसे मिलने आई थी ..तुम पूरी भीग चुकी थी ...लेकिन तुमने कुछ कहा नहीं कहा तो मैंने भी कुछ नहीं था ..लेकिन हमारे बीच कुछ था जो बात कर रहा था ...शायद वही प्रेम था...तभी तुमने अपनी भीगी हुई चुनरी मेरे गर्म माथे पर रख दी थी...मुझे बुखार नही था जान वह ताप था तुम्हारे प्रेम का जिसमें मैं तप रहा था ! तुम्हारी नर्म हाथों की ठंडी हथेलियां मेरे गालों पर रेंगती तो मेरे दिल में एक हलचल ही सी हो जाती ...तुम्हारी सागर सी गहरी आँखें मुझे तुम्हारी ओर  खींचती चली जाती मानो वक्त ठहर सा गया हो....ना जाने कब तुम सीने लिपट गई ... आँखें तो मेरी भी भर आई थी ना जाने क्यों कह ना सकी !
तुमसे कहा था ना ये नदी  और ये ढलती शाम हमारे प्रेम का सबूत है !
जब से तुम गई हो ये बारिश ये नदी मुझे पल पल हमारे प्रेम का अहसास कराते हैं.. तुम्हें दोष देना ठीक नही होगा ...मुझे याद है तुम्हें कितना तड़पी थी उस दिन चीखी थी चिल्लाई थी...कितने घाव थे तुम्हारे मन पर जो आज तक  नही भर पाए ...
मैं जानता हूं तुमने मुझे बचाने के लिए अपने आप को मुझसे दूर किया ...
लेकिन मन के घाव आंसुओं से भरे जाते हैं दूर रहने से नहीं ऐसा तुम ही तो कहा करती थी...तुम्ही तो कहती थी प्रेम निभाना कोई तुमसे सीखे ...
लेकिन आज मैं कहता हूं प्रेम करना कोई तुमसे सीखे ...जो आज भी मेरी आंखों में मोती बनकर आ जाती हो...तुम जहां भी अपना ख्याल रखना ...
तुम्हारा अभागा प्रेमी....