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ना दोस्त नहीं, just frnd भी नहीं समझो परछाई है चमक

ना दोस्त नहीं, just frnd भी नहीं समझो परछाई है चमक रही है पलकें वो आँखों में समायी है

जब साथ होते हैं धड़कने वक़्त से तेज़ भागती हैं सुनो आजकल मैं सो जाता हूँ, वो मुझमें जागती हैं

मैं माथे पे चूमता हूँ वो आँखे मूँद लेती है। मैं तुकबंदी लिखता हूँ, वो गहराई ढूँढ लेती है

कहती है अनमोल शायरी TV पे बेंच के आते हो कौन सा गहरा दर्द है, जो रोते और रुलाते हो

वैसे उसमें बचपना है, और उलटा हमें समझती है कल फिर सुबह हो गयी, इतनी बातें कहाँ से लाती है

फैलते काजल की फ़िक्र है, तो बस गुदगुदाया करो धूंधले दिखने लगते हो यही सोच के ना रुलाया करो

©Dilip Kumar only live
#
#dusk
ना दोस्त नहीं, just frnd भी नहीं समझो परछाई है चमक रही है पलकें वो आँखों में समायी है

जब साथ होते हैं धड़कने वक़्त से तेज़ भागती हैं सुनो आजकल मैं सो जाता हूँ, वो मुझमें जागती हैं

मैं माथे पे चूमता हूँ वो आँखे मूँद लेती है। मैं तुकबंदी लिखता हूँ, वो गहराई ढूँढ लेती है

कहती है अनमोल शायरी TV पे बेंच के आते हो कौन सा गहरा दर्द है, जो रोते और रुलाते हो

वैसे उसमें बचपना है, और उलटा हमें समझती है कल फिर सुबह हो गयी, इतनी बातें कहाँ से लाती है

फैलते काजल की फ़िक्र है, तो बस गुदगुदाया करो धूंधले दिखने लगते हो यही सोच के ना रुलाया करो

©Dilip Kumar only live
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dilipkumar1036

Dilip Kumar

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