#बंजर_प्रेम प्रेम में लिखी मैंने अनंत कविताएं✍️ और बिछोह में लिखी विरह✍️ गुनगुनाए कई गीत स्मर्ति में🍁 किंतु लगता है सब व्यर्थ लिखी✍️ प्रेम रूपी वृक्ष की शाखाएं कैसे फैलती जब जमीं ही बंजर निकली... कमी थी सौंधी मिट्टी की उसमे स्वयं को नही बचा सका वो संघर्ष करता रहा वह कोपल, सौम्या प्रेम जीने के लिए.... किंतु प्रकृति, हवाएं,नीर ही उसके विपक्ष निकली कैसे पनपता प्रेम वहां ,जब जमीं ही बंजर निकली ©पूर्वार्थ #Isolation