तुम ये गर्दन को तिरछा कर के अपने बाल कांधों पर लाती हो न सब समझता हूँ मैं कभी मुझको झूठा गुस्सा दिखा के छुप छुप के मुस्कुराती हो न सब समझता हूँ मैं कंगन कलाई पर घुमाते हुए जब आईने के आगे रुक जाती हो न सब समझता हूँ मैं मुझसे नज़र कम ही मिलाती हो मगर जब मिलाती हो न सब समझता हूँ मैं मेरा नाम लिए बिना आंखे बंद कर जब मुझे ही गुनगुनाती हो न सब समझता हूँ मैं चेहरे पर हाथ रख मेरे ही बारे में जब सहेली को बताती हो न सब समझता हूँ मैं रोज़ अलविदा कह कर मुझसे तुम जो चुपके से ख्वाब में आती हो न सब समझता हूँ मैं!!