कूर्फ्यू! बहुत पहले ही लग जाना चाहिए था ये कूर्फ्यू! इंसान! ये इंसान! ना जाने अपने आप को क्या समझता है, सोचता था, सब योनियों में सबसे ताक़तवर है तो कुछ भी कर सकता है, सब को रोंदकर उनका हक़ छीन सकता है, आज धरती काँप रही है इंसान के कुकर्मों से रुंदकर, सच, विफ़ल हो गई है धरती, विफ़ल हो गया आसमां! ये क़र्फ्यू! बहुत पहले लग जाना चाहिए था ये क़र्फ्यू! आप क्या कर रहे हैं क़र्फ्यू में? विचार-विमर्श कर रहे हैं अपने कर्मों का, या फ़िर, बैठे बैठे बोर ही हो रहे हैं? पौधे लगा रहे हैं social media पे likes बटोरने की खातिर, या, सच मुच धरा की ओर रुख किया है इस बार? उसकी पीड़ा का एहसास हुआ है इस बार? घर पे बैठे नित नये पकवान खा रहे हो या विश्व में फ़ैल रही भूखमरी का भी ख़्याल आया है इस बार? सुनो! इस बार ये कर्फ्यू ज़ाया मत होने देना, कर्फ्यू! बहुत पहले लग जाना चाहिए था ये कर्फ्यू! नहीं निकलेंगे लोग घरों से, नहीं जलेंगी चिमनीयां भी, पक्षी भी खुल कर सांस ले सकेंगे, घूमेगा सुकून से गली में अब कुत्ता भी! लेकिन, कब तक? कब तक भई, कब तक? हमेशा के लिए ये कैद क्या हमें मंज़ूर है? उपचार होगा इस virus का तभी, जब पक्षी, वृक्ष, जानवर, कीट इनको अपना समझेंगे हम सभी. कर्फ्यू! इस बार, ज़ाया ना जाने दें ये कर्फ्यू! ©Nikita Aggarwal #कर्फ्यू #Flower