नहीं फूलो सा है जीवन नित कंटक सा है चुभता, कुछ इच्छाओं की दे दी खुद बलि अब मन ना ये कोई इच्छा रखता, कैसी ये रंगमंच है दुनिया जहां इतने सारे खेल हैं है स्वार्थ से भरा मन सबका कहां मन का सच्चा मेल हैं, नहीं मिटने वाला है मेरे जीवन का ये रीतापन शायद अब नहीं रहा रिश्तों में वैसा अपनापन। indu mitra #नही फूलों सा है जीवन