दिए हुए हम चिराग बन कर, जलती लो का धुआं हुए। अश्क़ मिटे दुःख कटे, उल्फ़त में आफताब बने।। रह गई वो बची ख़ुशी, जिसको लेने वो अब चले। मिल न सकी वो मंज़िल उन्हें, जिसके हम अरमान बने।। #चिराग़-ए-ख़ास #दीवाली-मगन