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मै मजदुर हु. हॉ भाई मै मजदुर हु भोर सी भयी नयी ये

मै मजदुर हु.
हॉ भाई मै मजदुर हु

भोर सी भयी नयी
ये आस ऑख मे पली
के पास नहि आई
क्यो गरीब की तमारी है!
हमने डाले नींव
इस देश के बुलंदी की
चंद सरकारे अपनी
दे रही दुहाई है!
फिर भी अपनी परिस्थितीयो से मजबुर हु..,
हा भाई मै मजदुर हु!

हा भाई मै मजदुर हु
सुई,शर,तीर,घट,खुट,खंजर,असि
छोटी बड़ी सारी चिजे 
हमने बनाई है!
सेठ के घरो पे चुल्हे
हमने जला के आए
खुद के घरो मे खाली
पड़़ी एक कढाई है!
फिर भीे अपने परिवार का 
मै नुर हु....,
हॉ भाई मै मजदुर हु!

हा भाई मै मजदुर हु
फट गए है पट पड़े
यही है मेरे पास तब से
जब से मैने तेरे पट 
कयी नए बनाए है!
तख्त है नशीब तुझे
फिर भी छॉव गम के काले
झोपड़ मे भाल हमने
हर्ष के सजाए है!
अभी तरक्की से मै
कोसो दुर हु....,
हा भाई मै मजदुर हु...!

महेश श्रीवास जांजगीर....✍️

©Mahesh Shriwas
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