जज़्बात की ज़मीं पर हैं खण्डहरात फैले आते हैं अब यहां पर इतिहास लिखने वाले हैं रेत के कंटीले बंजर से थोड़े टुकड़े सूखा सा एक दरिया झुलसे हुए उजाले लिख लो ऐ लिखने वालो, तारीख़ उन दिनों की बनते थे रोज़ ही जब देश और धरम निवाले नामों निशां मिटा कर दम लेंगे कहते थे जो खोजे से भी न मिलते नाम उनका लेने वाले हद से गुज़र गए जो हद को बढ़ाने ख़ातिर सन्नाटों पे हैं नाचें अब वो नचाने वाले किसका था ख़्वाब ऐसा पूरा जो हो रहा है रुक जा अभी भी ऐसे सपने सजाने वाले #अंजलिउवाच #YQdidi #खण्डहरात #देश #धर्म #हद #ख़्वाब