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जाने कितने रात बिताए करवटें करवाती रही गिनतीयाँ

जाने कितने रात बिताए 
करवटें करवाती रही गिनतीयाँ 
हमने हताश के कितने परत बिछाए 

वो घड़ी की टिक टिकी 
वो हवाओं का साय साय
ना जाने कितने अंगारे सुलगाए 

आए हैं अब फूलों के गुलदस्ते लेकर 
ना जाने कितने बगिया के चमन उजाड़े 

वो जागना भी याद है 
वो आँसू भी याद है 
वो मजबूरी भी याद है 
वो गिड़गिड़ाना भी याद है 
इक शख्स के खातिर 
खुद को बुझाना भी याद है

©Rumaisa
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