मैं उड़ता परिंदा खुले सोच का बंदा, मेरे विचार पर्वतों से ऊँचे, मेरी भावनाएं नदियों सी बहती, मेरी आकांक्षाएं समुंद्र में जाकर ठहरे, मन हवाओं सा चंचल, कौन रोक पाया था मुझे, जो रोक पाता, यह था मेरा बचपन और बचपन की आजादी। मैं #उड़ता #परिंदा खुले सोच का बंदा मेरे विचार पर्वतों से ऊँचे मेरी #भावनाएं #नदियों सी बहती मेरी #आकांक्षाएं समुंद्र में जाकर ठहरे मन हवाओं सा चंचल कौन रोक पाया था मुझे जो रोक पाता यह था मेरा बचपन और #बचपन की #आज़ादी