मातृभाषा जब एक नवजात शिशु प्रथम बार बुदबुदाता है... अपने कोमल अधरों से कुछ टूटा-फूटा गाता है... तब मातृभाषा ही आगे बढ़कर उसकी जीभ थामती है... टूटा-फूटा जो भी बोले हर शब्द संभालती है... जब एक नवजात शिशु प्रथम बार बुदबुदाता है... अपने कोमल अधरों से कुछ टूटा-फूटा गाता है... जब प्रकृति सौंदर्य से मन ललचाता है... या कोई शोक,विषाद, तनाव निराशामय हो जाता है... तब मातृभाषा ही आगे बढ़कर उसका ह्रदय थामती है... उसके कोमल भावों को शब्द रूप देकर उसे कवि बनाती है... जब कोई प्रेमी प्यार मे पड़ता है या कोई डांटा-डपटा जाता है... तब मातृभाषा ही आगे बढ़कर उसका मन टटोलती है... प्यार,घृणा जो कुछ भी है सब बाहर निकालती है... जब कोई वैज्ञानिक नया आविष्कार करता है... या कोई कुछ नया रचता है तब मातृभाषा ही आगे बढ़कर उसका दिमाग खंगालती है... सोचने समझने का ज्ञान देकर उसे विचारवान बनाती है... और,जो सभ्यता अपनी भाषा नहीं बचाती विचारों से गूंगी भावों से अपाहिज हो जाती है... #hindidiwas #budbudana #komal #adharo