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Urmila ki manodasha . मन में उठती व्याकुलता ओ को अ

Urmila ki manodasha .
मन में उठती व्याकुलता ओ को अब किससे मैं कह दू
मन इतना जायदा विचलित है 
मैं कितना जायदा रो लू
प्रियतम बिन एक पल भी लगता  है 
सौ बरस सा
चदौहा वर्ष उनके विरहा अब कैसे मैं सहलू 
मन इतना ज्यादा विचलित है ....
ले जाते मुझे जो वन अगर मैं संग में विचरण करती 
पाव में चुभते काटे अगर मैं फिर खुश रह लेती 
मैं घास फूस और शैल की चट्टानों पर सो ली 
वन उपवन में रहे रहकर मैं ऐसे खुश रह लेती
ए भवन महल अटारी लगता मुझको निष्काम है
एक फूलों के बिस्तर भी लगता कंकर समान है
कब आएंगे लखन मेरे मैं हर पाल मार्ग निहारता हूं
उनकी बिन कितनी अधूरी है उनसे कहना चाहती हूं ....pu

©पूर्णिमा
  #उर्मिला की मनो दशा#

#उर्मिला की मनो दशा# #कविता

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