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चलो जालंधर चले लीजिए एक और शॉर्ट स्टोरी लिखी है आ

चलो जालंधर चले

लीजिए एक और शॉर्ट स्टोरी लिखी है आप लोगों के लिए, उम्मीद है पसंद आयेगी। मुझे पता है आप लोग "सफ़र मायानगरी का" के अगले भाग का इंतजार कर रहे होंगे, वो भी जल्दी आएगा। 
पूरी पढ़िएगा तभी मज़ा आएगा

😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 कहानी की शुरुआत हुई मेरे 10th पास होने के बाद से, जब मुझे अपने स्कूल और कुछ बेहद खास दोस्तों से दूर जाना पड़ा। 11th और 12th मेरी ज़िन्दगी के वो दो क्लास हैं, जिन्हें कभी मैं अपनी ज़िंदगी से मिटाना चाहता था, पर अब नहीं। उन दो सालों ने मुझे मेरी ज़िन्दगी की सबसे खास दोस्त से मिलाया। मेरे पिछले स्कूल में कई लड़कियां मेरी अच्छी दोस्त थी, और इस स्कूल में भी, मैं लड़कियों से नॉर्मल बातें किया करता था, सिर्फ एक को छोड़कर। उनका नाम था नवजोत..…. नवजोत कौर ब्रार। मैंने अपने जीवन में कोई भी शख्स ऐसा नहीं देखा जो हर किसी से इतनी सहजता और प्यार से बात करता हो। और इतना ही नहीं, पढ़ाई में भी हमारे क्लास की टॉपर थी। मैं अपने हाउस का कैप्टन था और वो अपने, शायद इसी कारण मीटिंग के दौरान हमारी आपस में कभी बात हुई हो, वरना इन दो सालों में बस हम कभी - कभी एक - दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया करते थे। दरअसल नवजोत, मुख्यता बरनाला, पंजाब की निवासी है, जो यहां अपने ताऊजी के साथ रहती थी। 
12th खत्म हुआ और सभी बच्चे अपने - अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो गए। उन दिनों मैं facebook और whatsapp पर अपने दोस्तों से कभी - कभी बातें किया करता था, नवजोत को छोड़कर। क्यूंकि नवजोत जी सिर्फ वॉट्सएप चलाती थी, और मेरे तो क्या लगभग किसी के पास भी उनका नंबर नहीं था। मैं कई बार इनका हाल पूछना चाहता था मगर कोई तरीका नहीं था। 
अब मैं आपको बताता हूं उस शख्स के बारे में जिसने लंका और समुद्र तट के बीच सेतु की भूमिका निभाई, सोनिया सिंह। ये और मैं हमारे हाउस के कैप्टन थे। ये बेहद विचित्र शख्सियत हैं, हमारे स्कूल के कुछ टीचर्स तक इनके आदेशों का पालन करते थे, और अगर हम इन्हें हमारे स्कूल में महिला सशक्तिकरण का एंबेसडर कहे तो गलत नहीं होगा😜😜। सोनिया और नवजोत अच्छे दोस्त थे और साथ ही सोनिया मेरी भी अच्छी दोस्त थी तो सोनिया ने ही नवजोत को बताया कि मैं उससे बात करना चाहता हूं। 
आसान नहीं था मेरे लिए 2-3 साल बाद अचानक इनसे बात करना, पता नहीं शायद स्वभाव बदल गया हो, पता नहीं क्या सोचेंगी। मगर सच कहा है किसी ने, जिन्हें हम दूर से तांकते थे, उन्हें दूर - दूर तक हमारा ख्याल नहीं आया, किसी ने क्या मैंने ही कहा है 😅😅 मोहतरमा से जब बात हुई तो इन्हे हमारा surname तक याद नहीं था🤨🤨 हमारा ग्रेजुएशन खत्म होने वाला था, और हम कभी - कभी whatsapp पर बात कर लिया करते थे।
ये चंडीगढ़ में थी और मैं प्रयागराज में। मैं CGL की तैयारी कर रहा था और ये UPSC की। एक दिन काफी अरसे बाद इनका मुझे फोन आया और इस फोन से ही हमारी दोस्ती गहरी होना शुरू हुई। Studies और कैरियर को लेकर कुछ इनकी समस्याएं होती थी, कुछ मेरी। हम आपस में उन्हें साझा कर एक - दूसरे को प्रोत्साहित करते थे, जिसका हमारे जीवन पर काफी अच्छा असर पड़ा , इन्होंने मेरी काफी मदद की। 
अब आते हैं कहानी के उस हिस्से पर जिसका यह शीर्षक जिक्र करता है। दरअसल नवजोत जी किसी फंक्शन में शामिल होने के लिए हरदोई आयी थी और सौभाग्य से मैं भी उस वक़्त हरदोई में ही था। इन्होंने मुझे अपने जाने की तारीख बताई और साथ ही ये भी बताया कि इनके साथ इनका पूरा परिवार भी आया हुआ है। मैं इनसे मिलना चाहता था पर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था। मुझे ये नहीं पता था कि कौन सी ट्रेन से जाने वाली है, मगर चूंकि शाम को पंजाब की एक ही ट्रेन थी तो मैं तुक्के से बिना इन्हें बताए हरदोई रेलवे स्टेशन पहुंच गया, वहां मैंने देखा कि सरदार जी तो पूरा पटियाला लेकर ही आ गए😄 स्टेशन पर लगभग 1000sq फीट में तो इन्हीं का परिवार जमा था, क्यूंकि जितने लोगों को जाना नहीं था उससे ज्यादा लोग उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे। लगभग 3 साल बाद मैंने नवजोत को देखा, ब्लैक सलवार - सूट और ठंड होने के कारण ब्लू शॉल, मगर मैं नवजोत से मिला नहीं।
तभी थोड़ी देर में ट्रेन आयी और पता नहीं मुझे क्या हुआ, जो मैंने ये पागलपन किया🙄🙄। मैं भी उस ट्रेन में बैठ गया और मम्मी को फोन लगाकर कहा कि सॉरी मैं अचानक जालंधर जा रहा हूं मौसी के पास, मम्मी के हावभाव सुनने लायक थे, बहुत डांट पड़ी मगर जैसे - तैसे समझा दिया। टिकट मैंने ऑनलाइन बुक करी और मैं उस कोच में नहीं बैठा जिसमें नवजोत थी क्यूंकि सच में मैं जालंधर जाने के लिए ट्रेन में बैठा था  इनसे मिलने के लिए नहीं।
लगभग 2 घंटे बाद मैंने नवजोत को फोन किया, जिसे अब तक ये भी नहीं पता था कि मैं स्टेशन भी आया हूं। मैंने उसे बताया कि मैं ट्रेन में हूं, किसी भी सामान्य शख्स की तरह उसने इस बात को झट से नकारकर हवा में उड़ा दिया। मगर उसे यकीन करना पड़ा जब मैंने उसे उसके कपड़ों और उस बच्चे के बारे में बताया जिसके साथ वो स्टेशन पर खेल रही थी। उन्होंने उस वक्त कैसा महसूस किया होगा, ये शायद वो खुद भी ना बता पाए। मुझे फोन पर ऐसा लगा जैसे वह अपनी सीट से उठकर, कोच में मुझे ढूंढने के लिए निकल पड़ी। मैंने उसे बताया कि मैं उसके कोच में नहीं हूं और मैं जालंधर जा रहा हूं, पता नहीं उसे कैसा लग रहा होगा । समय बीता और जालंधर स्टेशन आ गया, मुझे पता था कि वो मुझे प्लेटफॉर्म पर ढूंढने की कोशिश जरूर करेगी। इसलिए मैं प्लेटफॉर्म पर ना उतरकर दूसरी तरफ उतरा और अपनी मौसी के घर चला गया।
चलो जालंधर चले

लीजिए एक और शॉर्ट स्टोरी लिखी है आप लोगों के लिए, उम्मीद है पसंद आयेगी। मुझे पता है आप लोग "सफ़र मायानगरी का" के अगले भाग का इंतजार कर रहे होंगे, वो भी जल्दी आएगा। 
पूरी पढ़िएगा तभी मज़ा आएगा

😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 कहानी की शुरुआत हुई मेरे 10th पास होने के बाद से, जब मुझे अपने स्कूल और कुछ बेहद खास दोस्तों से दूर जाना पड़ा। 11th और 12th मेरी ज़िन्दगी के वो दो क्लास हैं, जिन्हें कभी मैं अपनी ज़िंदगी से मिटाना चाहता था, पर अब नहीं। उन दो सालों ने मुझे मेरी ज़िन्दगी की सबसे खास दोस्त से मिलाया। मेरे पिछले स्कूल में कई लड़कियां मेरी अच्छी दोस्त थी, और इस स्कूल में भी, मैं लड़कियों से नॉर्मल बातें किया करता था, सिर्फ एक को छोड़कर। उनका नाम था नवजोत..…. नवजोत कौर ब्रार। मैंने अपने जीवन में कोई भी शख्स ऐसा नहीं देखा जो हर किसी से इतनी सहजता और प्यार से बात करता हो। और इतना ही नहीं, पढ़ाई में भी हमारे क्लास की टॉपर थी। मैं अपने हाउस का कैप्टन था और वो अपने, शायद इसी कारण मीटिंग के दौरान हमारी आपस में कभी बात हुई हो, वरना इन दो सालों में बस हम कभी - कभी एक - दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया करते थे। दरअसल नवजोत, मुख्यता बरनाला, पंजाब की निवासी है, जो यहां अपने ताऊजी के साथ रहती थी। 
12th खत्म हुआ और सभी बच्चे अपने - अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो गए। उन दिनों मैं facebook और whatsapp पर अपने दोस्तों से कभी - कभी बातें किया करता था, नवजोत को छोड़कर। क्यूंकि नवजोत जी सिर्फ वॉट्सएप चलाती थी, और मेरे तो क्या लगभग किसी के पास भी उनका नंबर नहीं था। मैं कई बार इनका हाल पूछना चाहता था मगर कोई तरीका नहीं था। 
अब मैं आपको बताता हूं उस शख्स के बारे में जिसने लंका और समुद्र तट के बीच सेतु की भूमिका निभाई, सोनिया सिंह। ये और मैं हमारे हाउस के कैप्टन थे। ये बेहद विचित्र शख्सियत हैं, हमारे स्कूल के कुछ टीचर्स तक इनके आदेशों का पालन करते थे, और अगर हम इन्हें हमारे स्कूल में महिला सशक्तिकरण का एंबेसडर कहे तो गलत नहीं होगा😜😜। सोनिया और नवजोत अच्छे दोस्त थे और साथ ही सोनिया मेरी भी अच्छी दोस्त थी तो सोनिया ने ही नवजोत को बताया कि मैं उससे बात करना चाहता हूं। 
आसान नहीं था मेरे लिए 2-3 साल बाद अचानक इनसे बात करना, पता नहीं शायद स्वभाव बदल गया हो, पता नहीं क्या सोचेंगी। मगर सच कहा है किसी ने, जिन्हें हम दूर से तांकते थे, उन्हें दूर - दूर तक हमारा ख्याल नहीं आया, किसी ने क्या मैंने ही कहा है 😅😅 मोहतरमा से जब बात हुई तो इन्हे हमारा surname तक याद नहीं था🤨🤨 हमारा ग्रेजुएशन खत्म होने वाला था, और हम कभी - कभी whatsapp पर बात कर लिया करते थे।
ये चंडीगढ़ में थी और मैं प्रयागराज में। मैं CGL की तैयारी कर रहा था और ये UPSC की। एक दिन काफी अरसे बाद इनका मुझे फोन आया और इस फोन से ही हमारी दोस्ती गहरी होना शुरू हुई। Studies और कैरियर को लेकर कुछ इनकी समस्याएं होती थी, कुछ मेरी। हम आपस में उन्हें साझा कर एक - दूसरे को प्रोत्साहित करते थे, जिसका हमारे जीवन पर काफी अच्छा असर पड़ा , इन्होंने मेरी काफी मदद की। 
अब आते हैं कहानी के उस हिस्से पर जिसका यह शीर्षक जिक्र करता है। दरअसल नवजोत जी किसी फंक्शन में शामिल होने के लिए हरदोई आयी थी और सौभाग्य से मैं भी उस वक़्त हरदोई में ही था। इन्होंने मुझे अपने जाने की तारीख बताई और साथ ही ये भी बताया कि इनके साथ इनका पूरा परिवार भी आया हुआ है। मैं इनसे मिलना चाहता था पर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था। मुझे ये नहीं पता था कि कौन सी ट्रेन से जाने वाली है, मगर चूंकि शाम को पंजाब की एक ही ट्रेन थी तो मैं तुक्के से बिना इन्हें बताए हरदोई रेलवे स्टेशन पहुंच गया, वहां मैंने देखा कि सरदार जी तो पूरा पटियाला लेकर ही आ गए😄 स्टेशन पर लगभग 1000sq फीट में तो इन्हीं का परिवार जमा था, क्यूंकि जितने लोगों को जाना नहीं था उससे ज्यादा लोग उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे। लगभग 3 साल बाद मैंने नवजोत को देखा, ब्लैक सलवार - सूट और ठंड होने के कारण ब्लू शॉल, मगर मैं नवजोत से मिला नहीं।
तभी थोड़ी देर में ट्रेन आयी और पता नहीं मुझे क्या हुआ, जो मैंने ये पागलपन किया🙄🙄। मैं भी उस ट्रेन में बैठ गया और मम्मी को फोन लगाकर कहा कि सॉरी मैं अचानक जालंधर जा रहा हूं मौसी के पास, मम्मी के हावभाव सुनने लायक थे, बहुत डांट पड़ी मगर जैसे - तैसे समझा दिया। टिकट मैंने ऑनलाइन बुक करी और मैं उस कोच में नहीं बैठा जिसमें नवजोत थी क्यूंकि सच में मैं जालंधर जाने के लिए ट्रेन में बैठा था  इनसे मिलने के लिए नहीं।
लगभग 2 घंटे बाद मैंने नवजोत को फोन किया, जिसे अब तक ये भी नहीं पता था कि मैं स्टेशन भी आया हूं। मैंने उसे बताया कि मैं ट्रेन में हूं, किसी भी सामान्य शख्स की तरह उसने इस बात को झट से नकारकर हवा में उड़ा दिया। मगर उसे यकीन करना पड़ा जब मैंने उसे उसके कपड़ों और उस बच्चे के बारे में बताया जिसके साथ वो स्टेशन पर खेल रही थी। उन्होंने उस वक्त कैसा महसूस किया होगा, ये शायद वो खुद भी ना बता पाए। मुझे फोन पर ऐसा लगा जैसे वह अपनी सीट से उठकर, कोच में मुझे ढूंढने के लिए निकल पड़ी। मैंने उसे बताया कि मैं उसके कोच में नहीं हूं और मैं जालंधर जा रहा हूं, पता नहीं उसे कैसा लग रहा होगा । समय बीता और जालंधर स्टेशन आ गया, मुझे पता था कि वो मुझे प्लेटफॉर्म पर ढूंढने की कोशिश जरूर करेगी। इसलिए मैं प्लेटफॉर्म पर ना उतरकर दूसरी तरफ उतरा और अपनी मौसी के घर चला गया।