लोगों के मुताबिक नज़र आने की, अदा सीख रहा हूँ ज़माने की। किसी भी तरह घर में ठहर जाऊँ, तलाश है मुझे बस एक बहाने की। इसीलिए दरवाजा खोला नहीँ था, उम्मीद नहीं थी तेरे आने की। कमरे को देखकर हंसी आ जाती है, कोई बाते करता था इसे सजाने की। इस डर से भी कि तू रो ना पड़े, हिम्मत नहीं मेरी कहानी बताने की। मांगने मे कोई कसर नहीं छोड़ी, अब देरी है दुआओं के असर दिखाने की। वैसे वाजिब तो यही है मगर ख्वाहिश नहीं है, तेरी जगह किसी और को बैठाने की। काट दो ये गवारा है मुझे, ख़ून इजाजत नहीं देता सर झुकाने की। बाल भी कटवा लिए और काम पर भी जाने लगा, हाँ, अब तैयारी ही है तुझे भुलाने की। ©Sagar Oza #StandProud #sagaroza #sagarozagoogle #sagarozashayari