ठूँठ हूँ मैं वृक्ष के नाम पर अब झूठ हूँ मैं हुआ करता था मैं भी कभी हरा भरा फल-फूल-पत्ति छाया से ढंकता था धरा बंदर उछले थे क्या कीड़े क्या मकोड़े घोंसले बने थे रहते थे चिड़ियों के जोड़े। दिनभर पंछियों की कलरव मचती थी रातों को उल्लूओं की पंचायत सजती थी। मानव भी आता था समय समय पर कभी छाँव तो कभी फल की उम्मीद लेकर। #वृक्ष #ठूँठ #pra Pic from instagram