ग़ज़ल अभी सुबह होने में पूरी पूरी रात बाकी है, तुमसे करनी कुछ अधूरी बात बाकी है। यह गलत फहमी है कि मज़ा बहुत आता है, अरे अभी तो होना असली शुरुआत बाकी है। चलना हो तो ज़रा संभलकर चलना इस रास्ते, राह में कि काॅटों से भरी लंबी बिसात बाकी है। आशिकी उलझनों का सुलझना बेहद मुश्किल है, उससे निजात के बाद भी यादों से निजात बाकी है। बेहद आसान है इस राह का राही बनना मगर, मुश्किल है जीना जो पड़ी अधूरी हयात बाकी है। अब नसीहत-ए-राही भी काम की है बहुत मगर, तगाफुल करने वालों के दिल में कुछ जज्बात बाकी है। अब चलने भी दो अभी बहुत चलना है मुझे, कुछ दूरी तक ही चला यह पूरा सिरात बाकी है। #ग़ज़ल_ए_राही #बिसात #निजात #नसीहत_ए_राही #तगाफुल_अनदेखी #सिरात #आशिकी_उलझन