दुआओं को मेरी नामंजूर होते देखा है, ख़ुदा को पत्थर, पत्थर को ख़ुदा देखा है, मेरे मतलब के लोग मिल जाए तो भी क्या, जब मैंने ही ख़ुद से ख़ुद को जुदा देखा है, मंजूर थी क़ैद, कि साथ ज़िंदगी बसर हो, उन्हीं परिंदों में कुछ को हवा होते देखा है, चिल्लाता रहा पर चारागर कोई ना था, फिर उसी दर्द को ही दवा होते देखा है, फ़र्क नहीं पड़ता मेरा रुकना, चले जाना, मैंने अपनों की दुआओं को क़दा होते देखा है। #yqbaba #yqdidi #yqhindiurdu #yqhindi #yqlongform #longformpoetry