विषय - काश!! ******************************* खेतों मे पक कर तैयार खड़ी थी। किसान के दिल मे आस बड़ी थी। गिरी गाज आज फिर आसमान से फूटे कर्म ना जाने कौन सी घड़ी थी। तबाह हो गयी खेती , देखते -देखते, टहनी-टहनी अब औंधे मुँह पड़ी थी। पौध -पौध सींची थी खून पसीने से, पत्नी भी हल संग बैलों-सी जड़ी थी। सोचा था कर देंगे हाथ पीले अबकी बेटी जो जवानी की दहलीज चढ़ी थी। देते रहे वो दुहाई पुकार -पुकार कर, जिंदगी और मौत की जंग सी लड़ी थी। फिर गया पानी अरमानों पर पल भर में वो बेबस देखता रहा,उसे अपनी तड़ी थी। खुद की तबाही का मंजर देखा ना गया, झूल गया फंदे से ,पेड़ पर मौत टंगी थी। #काश!कि थम जाती बारिश बर्बादी की, दुआ"सुनीता"ने भी उनके हक में पढ़ी थी। काश!! थम जाती आफ़त की बारिश