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सूर्य देव :-पुराणों के अनुसार सूर्य देवता के पिता

सूर्य देव :-पुराणों के अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है-अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है-33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है- उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।

भैरव और कालभैरव:-यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है।

भैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है। 1- कालभैरव भगवान शिव के अवतार हैं और ये कुत्ते की सवारी करते है। 2- भगवान कालभैरव को रात्रि का देवता माना गया है। 3- कालभैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है।

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 266 से 276 नाम 
266 दुर्धरः जो मुमुक्षुओं के ह्रदय में अति कठिनता से धारण किये जाते हैं
267 वाग्मी जिनसे वेदमयी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ है
268 महेन्द्रः ईश्वरों के भी इश्वर
269 वसुदः वसु अर्थात धन देते हैं
270 वसुः दिया जाने वाला वसु (धन) भी वही हैं
271 नैकरूपः जिनके अनेक रूप हों
272 बृहद्रूपः जिनके वराह आदि बृहत् (बड़े-बड़े) रूप हैं
273 शिपिविष्टः जो शिपि (पशु) में यञरूप में स्थित होते हैं
274 प्रकाशनः सबको प्रकाशित करने वाले
275 ओजस्तेजोद्युतिधरः ओज, प्राण और बल को धारण करने वाले
276 प्रकाशात्मा जिनकी आत्मा प्रकाश स्वरुप है
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' सूर्य देव :-पुराणों के अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है-अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है-33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है- उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।

भैरव और कालभैरव:-यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है।
सूर्य देव :-पुराणों के अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है-अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है-33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है- उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।

भैरव और कालभैरव:-यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है।

भैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है। 1- कालभैरव भगवान शिव के अवतार हैं और ये कुत्ते की सवारी करते है। 2- भगवान कालभैरव को रात्रि का देवता माना गया है। 3- कालभैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है।

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 266 से 276 नाम 
266 दुर्धरः जो मुमुक्षुओं के ह्रदय में अति कठिनता से धारण किये जाते हैं
267 वाग्मी जिनसे वेदमयी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ है
268 महेन्द्रः ईश्वरों के भी इश्वर
269 वसुदः वसु अर्थात धन देते हैं
270 वसुः दिया जाने वाला वसु (धन) भी वही हैं
271 नैकरूपः जिनके अनेक रूप हों
272 बृहद्रूपः जिनके वराह आदि बृहत् (बड़े-बड़े) रूप हैं
273 शिपिविष्टः जो शिपि (पशु) में यञरूप में स्थित होते हैं
274 प्रकाशनः सबको प्रकाशित करने वाले
275 ओजस्तेजोद्युतिधरः ओज, प्राण और बल को धारण करने वाले
276 प्रकाशात्मा जिनकी आत्मा प्रकाश स्वरुप है
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' सूर्य देव :-पुराणों के अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है-अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है-33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है- उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।

भैरव और कालभैरव:-यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है।