#सोचता हूं कैद सा हूं मौत की अदालत में चुभती है ये ख़ामोश बेपरवाही तेरी इस जुर्म में तेरे अपने भी साथ हैं कैसे साबित करता मैं बेगुनाही मेरी - कवि अनिल #KaviAnilkumar