वो शाम चिराग़ो वाली ज़हन औ ज़ीस्त क्यो रौशन नही करती क्यो रौशनी से ज़्यादा अब इसमें मांस, प्लास्टिक व कंडो की जलन का धुआं व दुर्गंध हावी है क्यो अब आतिशबाजी, फुलझड़ी और अनार की जगह क़ौम का मुस्तक़बिल ज़्यादा जलता है क्या कंदीलों व दियो से स्वागत व उजाले की जगह घबराहट व अंदेशा व थरथराहट हावी है क्यूकर ये आभास होता है कि अब चार यार मिलकर पत्ते नही पीस रहे है बल्की मुल्क की रूह द्रौपदी स्वरूपा चीर हरण के लिए बालों से खींच कर ले जाई जा रही है और उसके सरपरस्त जानकर उसे हार रहे हैं क्यों ये पर्व लक्ष्मी व राम के आगमन का नही लगता बल्की ये लगता है की ये महत्वपूर्ण पर्व है कलेप्टोक्रेट्स, बेऔरोक्रेट्स, राजनेताओ व उनके दल्लो के बयाने लेने देने का और बाजियां उधर ही चल रही है दोस्त लोग तो दूज निकलने के इंतज़ार में है कि फिर नौकरी ढूंढना शुरू करे क्यो दहकान औ किसान खील खिलौने व बताशों की जगह सल्फॉस व ज़हर ढूंढ रहा क्यों मुझे लगता है की ये त्योहार हिंदुस्तान से हिन्दुओ का हुआ और अब सिर्फ दल्लो और कुत्तो का हो चला है गो परम्परा है सो कोशिश मनाने की बहुत लोग करते है क्या मेरी सोच व अहसास तन्हा है ।।मौजज़ा©।। वो दीपावली की शामें भूले से भी नहीं भूलतीं... #दीपावलीकीशाम #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi