शीर्षक- रात जगाने दो रचना प्रकार- गज़ल जिस प्यास का मुंतज़िर हूँ वो प्यास जगाने दो इस हवाओं के झोंके में एक ऐहसास जगाने दो ये नींद बड़ी बेरहम है अब तन्हाई में नहीं आती रात न सही दिन में रातों वाली ख़्वाब जगाने दो जो वादों के पुल बाँधा करते थे तुम कभी हमसे वक़्त आया है वो वादें इरादें और याद जगाने दो सोए थे जो तवील उम्र से वो हर राज़ जगाने दो मोहब्बतों का दौर लौटा बे हिसाब जगाने दो बड़ा बेसब्री से इंतज़ार था इसी सुहाग रात का रतजगे की रात है "रहमत" इस रात जगाने दो ©Sheikh Rahmat Ali Bastvi #sheikhrahmatalibastvi #ariyen_poet #viral #hindiurdupoetry Udass Afzal khan ❣️Dard ki jaan