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बहुत गुदगुदाता है, रात के मध्य जोर शोर से जब तुम

 बहुत गुदगुदाता है, रात के मध्य
जोर शोर से जब तुम बरसते हो । 
कितनी तृप्ति है
तुम्हारे अंत:करण में 
मै ही नहीं,  ये धरा भी प्यासी है
आओ न एक बार, 
फिर से बरसो
उष्ण हो चुकी हूं मैं
मुझे तृप्ति दे कर,
 लहलहाने दो ।
                                       सुनीति

©Sunita
  #madhyratri
#मध्यरात्रि