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रण होगा अनुकूल कभी ये किसने तुमको समझया, विषम परि

रण होगा अनुकूल कभी ये किसने तुमको समझया, 
विषम परिस्थिति वो नहीं जब गैरों से युद्ध करो तुम, 
विषम स्तिथि तो ये है जब अपनों के विरुद्ध खडे हो तुम, 
हे पार्थ हे कौन्तेय हे भारत हे अर्जुन गाण्डीव धारी,
खडे हुए हो समर भूमि के केन्द्र बिन्दु पर तुम, 
अब बचा नहीं है विकल्प शेष युद्ध छोडकर जाने का, 
वीर हो वीरोचित आचरण करो निर्भीक हो गाण्डीव धारण करो,
सिर्फ कर्म है तुम्हारे हाथ में परिणाम मेरा है काम, 
मरे हुऐ है सभी पहले से तुम सिर्फ जरिया हो,
युद्ध करो कौन्तेय सिर्फ यही कर्म है तुम्हारा।। 

#अंकित सारस्वत# #महाभारत1
रण होगा अनुकूल कभी ये किसने तुमको समझया, 
विषम परिस्थिति वो नहीं जब गैरों से युद्ध करो तुम, 
विषम स्तिथि तो ये है जब अपनों के विरुद्ध खडे हो तुम, 
हे पार्थ हे कौन्तेय हे भारत हे अर्जुन गाण्डीव धारी,
खडे हुए हो समर भूमि के केन्द्र बिन्दु पर तुम, 
अब बचा नहीं है विकल्प शेष युद्ध छोडकर जाने का, 
वीर हो वीरोचित आचरण करो निर्भीक हो गाण्डीव धारण करो,
सिर्फ कर्म है तुम्हारे हाथ में परिणाम मेरा है काम, 
मरे हुऐ है सभी पहले से तुम सिर्फ जरिया हो,
युद्ध करो कौन्तेय सिर्फ यही कर्म है तुम्हारा।। 

#अंकित सारस्वत# #महाभारत1