पलकों में अभी तो सपने सजाये थे अभी ही तो किसी को दिल की बात बताई थी माना शैतानियां करती थी वो मगर अब भी तो वो नादाँ थी यैसी भी क्या खता थी उसकी हर सपने को तोड़ दिया उड़ना चाहती थी आसमान में वो क्यों पैरो में बेड़ियाँ डाल दिया था ये समय उसका सपनो को साकार करने की क्यों उस के नन्हे कंधो पे घर की जिम्मेदारियां डाल दिया गांव की हर बेटी का ये ही कहानी होती हैं खुद का बचपन सात फेरो में जला अपने बच्चे ही संभालती हैं ©vaishnavi Mala बचपन की बलि