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पलकों में अभी तो सपने सजाये थे अभी ही तो किसी को

पलकों में अभी तो सपने सजाये थे 
अभी ही तो किसी को दिल की बात बताई थी 
माना शैतानियां करती थी वो 
मगर अब भी तो वो नादाँ थी 
यैसी भी क्या खता थी उसकी 
हर सपने को तोड़ दिया 
उड़ना  चाहती थी आसमान में वो
क्यों पैरो में बेड़ियाँ डाल दिया 
था ये समय उसका 
सपनो को साकार करने की 
क्यों उस के नन्हे कंधो पे 
घर की जिम्मेदारियां डाल दिया 
गांव की हर बेटी का ये ही कहानी  होती  हैं  
खुद का बचपन सात फेरो में जला 
अपने बच्चे ही संभालती हैं

©vaishnavi Mala 
  बचपन की बलि
पलकों में अभी तो सपने सजाये थे 
अभी ही तो किसी को दिल की बात बताई थी 
माना शैतानियां करती थी वो 
मगर अब भी तो वो नादाँ थी 
यैसी भी क्या खता थी उसकी 
हर सपने को तोड़ दिया 
उड़ना  चाहती थी आसमान में वो
क्यों पैरो में बेड़ियाँ डाल दिया 
था ये समय उसका 
सपनो को साकार करने की 
क्यों उस के नन्हे कंधो पे 
घर की जिम्मेदारियां डाल दिया 
गांव की हर बेटी का ये ही कहानी  होती  हैं  
खुद का बचपन सात फेरो में जला 
अपने बच्चे ही संभालती हैं

©vaishnavi Mala 
  बचपन की बलि