था दाना दाना कर्ज में, था हर कतरा मजदूर, हाँ किसान की बात करता हूँ मैं जो हर पल है मजबूर। रोटी टुकड़ा खाये के सुबह चले खेत, श्याम को घर आये जो बन मिट्टी में रेत, भूखा रखे पेट को प्यासा रहे जो खेत। ऐसी इसकी आस्था ज्यों पूस की रात में अलाव सी, ऐसी इसकी उम्मीद ज्यों जेठ में ठंडी छांव की, 9 महीने खेत कमाया शक्ल देखी न गांव की। आज जब बरसात हुई ,न पूछो कैसी कयामत सी गिरी पकी फसल पर, जैसे ब्याज बिखरा था असल पर, वो सूदखोर निकला घर से जूतियां मसलकर, लगा कर के कान से शब्दों के जहर को गटकता रहा, फिर पी कर के जहर के घूंट फंदों पे लटकता रहा,गिरता रहा वो निर्बल संभल संभल कर, पर फिर जो गिर के उठा तो चार कन्धों पे उठाया गया ,श्मशान में बिना लकड़ी जलाया गया, न होना किसान फिर ये फुसफुसाया गया किसान का श्मशान सफर।। #किसान, #ब्याज#सूद#आत्महत्या