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ज़िंदगी तो आज है किसकी ज़िंदगी कल रही है, क़ल्ब टूटने

ज़िंदगी तो आज है किसकी ज़िंदगी कल रही है,
क़ल्ब टूटने  के  बाद चाहत बदन में पल रही है।

पतझड़ के मौसम में सूख जाते है हलख भी अक़्सर,
ज़िंदगी के फसाने देखों आँखों में बारिश चल रही है।

नाज़ रहता था जिनको ख़ुद की हैसियत का 'आशु',
जरा सी हवा क्या चली औक़ात मिट्टी में मिल रही है।
 (क़ल्ब-दिल)
📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-44 में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
ज़िंदगी तो आज है किसकी ज़िंदगी कल रही है,
क़ल्ब टूटने  के  बाद चाहत बदन में पल रही है।

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ज़िंदगी के फसाने देखों आँखों में बारिश चल रही है।

नाज़ रहता था जिनको ख़ुद की हैसियत का 'आशु',
जरा सी हवा क्या चली औक़ात मिट्टी में मिल रही है।
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