भाग्य सी स्याह उसके तारकोल की सड़क पे पैरों के छालों से कराहता विवश आंखो में पिता की देख वो प्रश्न ये उठाता है बाबा हमें घर पहुंचाने ये विमान क्यों नहीं आता है हार जाते हैं सारे तर्क मेरे उसकी मासूमियत के आगे समनाता का अधिकार सबको केवल किताब में मिल पता है सामर्थ्यवानों के समक्ष नमस्तक होता मजदूर की मृत्यु पर अफसोस जताता हर सिकंदर इस लोकतंत्र का बौना सा नज़र आता है ।। #विवश #मजदूर बाबा घर ले जाने ये विमान क्यूं नहीं आता