चुप थी मैं अब चुप न रहुँगी बहुत सहा अब और न सहुँगी। गाली दी हाथ उठाया सब जुल्म सहा छुप छुप के रोई कभी किसी से न कहा। अपने हक की आवाज बुलंद करुँगी। तेरी बन के रही तुझे रहना न आया जहाँ कद्र नहीं मेरी वहाँ न रहूँगी। ऐ पति तुझे परमेश्वर माना था बहुत हुआ पैर की जूती न बनुंगी। फख्त जिस्म में कैद नहीं वजूद मेरा आजाद रुह हूँ आजाद ही रहूँगी। तेरे लिए सोलह श्रृंगार किए अब अपने लिए सजू संवरुंगी। मेरी संभावनाओं को नजरअंदाज करनेवाले अपनी तकदीर की ईबारत खुद लिखूंगी। चुप थी मैं अब चुप न रहुँगी बहुत सहा अब और न सहुँगी। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ महिलाओं के खिलाफ हिंसा का उन्मूलन