किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें..!! #गुलज़ार #जन्मदिन_मुबारक 💐 #लेखनी✍️ ©~anshul किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें..!! #गुलज़ार