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 आज सुबह जैसे ही अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के



 आज सुबह जैसे ही अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए अपने गेट से बाहर निकला, बाहर नजर एक आठ -नौ वर्ष की छोटी लड़की पर नजर पड़ी। वह अपने कंधे पर थैला लटकाए हुए, कूड़ा बीन रही थी। मन विक्षोभ से भर गया। इसकी उम्र के अन्य बच्चे स्कूल जा रहे हैं, और वह छोटी लड़की कूड़ा बीन रही थी। फिर मैंने उसे सुरक्षा बरतने के लिए पूछा" बेटा तुम्हारी मां कहां है अपने मां के नजदीक रहकर कूड़ा बीनो।

 उसे छोटी लड़की ने बिना लाख लपेट के कहा" वह खत्म हो गई है"।

 वह लड़की ऐसे मोहल्ले से गुजर रही थी, जहां लोग की बड़ी-बड़ी कोठियां थी और वह अपने रोज की रोटी के लिए संघर्ष कर रही थी।

 अगर ईश्वर जैसी कोई चीज होती तो मुझे नहीं लगता ऐसा भी अन्याय होता, उसे छोटी लड़की को कौन से गुनाह की सजा मिल रही थी. और लोग हैं जो जीवन पर्यंत, सब कुछ होते हुए भी, तृप्ति की तलाश में लगे हुए हैं। और यह छोटी बच्ची तृप्ति छोड़ो, आज का दिन जी लेने के लिए भी संघर्ष कर रही हैं।


बस यूँ ही

©Kamlesh Kandpal
  #Tripti