ज़ब तक सूरज मे तेज रहे ज़ब तक शीतलतम रहे चन्द्रमा ज़ब तक वायु मे वेग रहे ज़ब तक सरिता कि धारा हो ज़ब तक पृथ्वी पर पानी हो महि भार उठाते शेषनाग और सागर बिच रवानी हो ज़ब तक उदयाचल अरुणीम हो ज़ब तक अस्ताचल दीप्त रहे ज़ब तक ये अवनि का आँचल हो वन से उपवन से लिप्त रहे ज़ब तक आकाश विशाल रहे और हिमशीखरों का भाल रहे ज़ब तक अग्नि मे तपन रहे ज़ब तक पंक्षी मे लगन रहे ज़ब तक सूरज रथा रुण हो मंगल भोर प्रभाती गाये आन बान और शान तिरंगा यूं ही अंबर तक लहराये यूं ही अंबर तक लहराये ©ranjit winner independent