अनमोल रतन, आगन्तुक अपनी गुड़िया को, अपनी गोद में खिलाया होगा, कितना लाड लगा कर,उसको बाहों में झुलाया होगा, धन्य बाबुल जिगर तेरा, कैसे अपने जिगर के टुकड़े का कन्यादान किया होगा। जानता है वो उसकी ख्वाहिश न पूरी कर कर सकेगा कोई, इसलिए हर छोटी-बड़ी मांग को उसने पुगाया होगा, धन्य बाबुल जिगर तेरा, कैसे अपने जिगर के टुकड़े का कन्यादान किया होगा। कठोर नारियल समान बाबुल ने, आंखों से आंसू ना बहाए पर हृदय तो द्रवित किया होगा।, ना कोई ऐसा तीरथ था, ना कोई ऐसा तीरथ हुआ होगा, धन्य बाबुल जिगर तेरा, कैसे अपने जिगर के टुकड़े का कन्यादान किया होगा। वाणी में मिठास और सहनशीलता के अलंकार से सजाया होगा, अपने संस्कार से मिटाना अज्ञानता का अंधकार, धन्य बाबुल जिगर तेरा, कैसे अपने जिगर के टुकड़े का कन्यादान किया होगा। अनमोल रतन, आगन्तुक अपनी गुड़िया को, अपनी गोद में खिलाया होगा, कितना लाड लगा कर,उसको बाहों में झुलाया होगा, धन्य बाबुल जिगर तेरा, कैसे अपने जिगर के टुकड़े का कन्यादान किया होगा। जानता है वो उसकी ख्वाहिश न पूरी कर कर सकेगा कोई, इसलिए हर छोटी-बड़ी मांग को उसने पुगाया होगा,