"थोड़े नासमझ, थोड़े नादान ही तो हैं," थोड़ी मासुमियत, जमाना से अनजान ही तो है। अभी तो खिलखिलाना सीखी थी, न जानती थी वो चेहरे को पढ़ना थी वो सबकी प्यारी, रहती वो न्यारी-न्यारी। दरंदगी के आँख चूभ गई, थी फूल पीस गई। संवेदनाओं में झूल गई। चार दिन बाद, दुनिया भूल गई। कविता