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"थोड़े नासमझ, थोड़े नादान ही तो हैं," थोड़ी मासुमिय

"थोड़े नासमझ, थोड़े नादान ही तो हैं," थोड़ी  मासुमियत,
 जमाना से अनजान  ही तो है। 
अभी तो खिलखिलाना सीखी थी, 
न जानती थी वो चेहरे को पढ़ना
थी वो सबकी प्यारी, 
रहती वो न्यारी-न्यारी। 
दरंदगी के आँख चूभ गई, 
थी फूल पीस गई। 
संवेदनाओं में  झूल  गई। 
चार दिन बाद, 
दुनिया भूल गई। कविता
"थोड़े नासमझ, थोड़े नादान ही तो हैं," थोड़ी  मासुमियत,
 जमाना से अनजान  ही तो है। 
अभी तो खिलखिलाना सीखी थी, 
न जानती थी वो चेहरे को पढ़ना
थी वो सबकी प्यारी, 
रहती वो न्यारी-न्यारी। 
दरंदगी के आँख चूभ गई, 
थी फूल पीस गई। 
संवेदनाओं में  झूल  गई। 
चार दिन बाद, 
दुनिया भूल गई। कविता
nankipatre1753

Nanki Patre

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