कबीरा दरिया सागर सौ घाट घाट चला बहता जाए कोऊ तौ मिलै भारतवासी जो भारत की बात सुनाए जाति पांत सब छोड़ कै मानव -मानव गले लगाए जो मानव को मानव समझे नहीं वो मानव नहीं कहलाए गैरन की बात मान कैं अपनन सें इठलाए घर की चाकी जाको बुरौ लगै औरन की रोटी खाए जाते तौ दुश्मन भलौ तकौ यथापूर्व पता चल जाए कहत कबीर सुनो भई साधो घर कौ भेदी लंका ढाए ©Asheesh indian complete version soon 🔜 #KabirJayanti