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मन बैरागी फिर रहा है ,मारा-मारा, रह गया है पास,या

मन बैरागी फिर रहा है ,मारा-मारा, 
रह गया है पास,यादों का सहारा ।
विचारों की बाढ़ में, मैं  बह रहा हूँ 
हँसी,ठिठोली,लानतें सब सह रहा हूँ 
दूर तक देखा ,मिला पानी ही पानी,
दीखता मुझको नहीं कोई किनारा।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  #Raat मन बैरागी

#Raat मन बैरागी #कविता

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