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"तुम्हारे लिए " साधारण सा नाम कितनी असाधारण कृति

"तुम्हारे लिए "
साधारण सा नाम
कितनी असाधारण कृति 
"विराग -अनुमेहा " को रचने वाले 
रचनाकार "हिमांशु जोशी "जी  🙏🙏 "अपने को छलना , सच ,कितना कठिन होता है ।" 
कल्पना कहूँ या हकीक़त।
सच कहूँ या कहानी कहूँ इसे ।
पढ़ते-पढ़ते लगा जैसे "विराग -अनु मेहा " 
सचमुच है ।
 ना मेरी ज़िन्दगी में कोई "विराग " था ना आगे कभी होगा फिर भी तुम सामने आ कर खड़े हो गए।  "मेहा - अनुमेहा " मेरी कहानी नहीं फिर क्यों उसमें मैं अपने भीतर की "अनु " को खोजने लगी।
 सच्ची प्रेम कहानी का यही अंत क्यों ?
सब कुछ जानते , समझते हुए भी हम अपने दिल की बात क्यों नहीं कह सकते हैं ? आख़िर क्यों ? ना जाने कितने सवाल मन में उठने लगते हैं ।
"तुम्हारे लिए "
साधारण सा नाम
कितनी असाधारण कृति 
"विराग -अनुमेहा " को रचने वाले 
रचनाकार "हिमांशु जोशी "जी  🙏🙏 "अपने को छलना , सच ,कितना कठिन होता है ।" 
कल्पना कहूँ या हकीक़त।
सच कहूँ या कहानी कहूँ इसे ।
पढ़ते-पढ़ते लगा जैसे "विराग -अनु मेहा " 
सचमुच है ।
 ना मेरी ज़िन्दगी में कोई "विराग " था ना आगे कभी होगा फिर भी तुम सामने आ कर खड़े हो गए।  "मेहा - अनुमेहा " मेरी कहानी नहीं फिर क्यों उसमें मैं अपने भीतर की "अनु " को खोजने लगी।
 सच्ची प्रेम कहानी का यही अंत क्यों ?
सब कुछ जानते , समझते हुए भी हम अपने दिल की बात क्यों नहीं कह सकते हैं ? आख़िर क्यों ? ना जाने कितने सवाल मन में उठने लगते हैं ।