" बंध के परिणय सूत्र में " और कब तक, दूर तुम जोवन छुआ से भागती फिरती रहोगी .. सिंह डर से दूर वन में र्चौकड़ी दिन-रात , तुम कितनी भरोगी ... है बचन मेरा अभय, प्राणों से प्यारी , तुम सदा बनकर रहोगी... बंध के परिणय सूत्र में ,सारे जहां में , स्वामिनी बनकर फिरोगी गी.. " बंध के परिणय सूत्र में"