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खुद को खुद में ढूंढा कई बार मैंने अपने भावों से पू

खुद को खुद में ढूंढा कई बार मैंने
अपने भावों से पूछा कई बार मैंने
प्रयास करता रहा और थकता रहा
सफ़र में खुद से रूठा कई बार मैंने
खुद को खुद में.......
प्रश्नों का बोझ लेकर खुशियों में रोष
टूटकर खुद से जूटा कई बार मैंने
अद्भुत ये प्यास मन करता तलाश 
कैदी बनकर के छूटा कई बार मैंने 
खुद को खुद में.......
मरहमों की ठोकर का अपना मज़ा है
उस अक्स के लिए टूटा कई बार मैंने
जो देखा वो सत्य है या जो पढ़ा "सूर्य"
देखा अदभुत अजूबा कई बार मैंने
ख़ुद को खुद में.......

©R K Mishra " सूर्य "
  #ढूंढा  Sethi Ji Ashutosh Mishra Babita Kumari Kanchan Pathak भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन