वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह •एकलिंगजी रो हो दीवान, कुम्भा रो वंशज ,हिन्दुआ सूरज राखतो राजपूती शान, उद्घोष कर आजादी री ललकार ,हो भारत रो अभिमान । •मिल मुगलाँ सागे मानसिंह करयो हमलो ,महाराणा जंगल में आसरो लियो बनाय, सारी विपत्तियाँ पळ भर में आगी ,हरये घास री रोटी दी खुवाय। •हल्दीघाटी लाल रंग में बदलगी ,चारूँ ओर बस होई चीख पुकार, अरावली में होयो विभत्स संग्राम ,प्रताप भारी ऊँची हुंकार । •दुश्मणा लियो चारूँ ओर स्यूँ घेर ,मेवाड़ रो शेर करतो रयो गर्ज़न, शेषनाग सो लहरातो कीको ,करतो रयो मुगलाँ रो मर्दन । •'फर्जन्द' ने राणा ढूंढे ,बनगे चेतक रो असवार, मान रे गज रे माथे पर रखगे टाप ,चेतक भरे ठाडी हुंकार। •मुगलाँ में हाहाकार मच गयो ,जद लहराई राणा री तलवार, दोज़ख री मौत बरसे रण में ,राणा रो काळजो बन रयो अंगार। •डावी आँख में बाण लाग्यो राणा रे ,घाटी में कुछ ना रयो दिखाय, स्वामिभक्त चेतक राणा ने ले उड़यो , लिया प्रताप रा प्राण बचाय। •राजचिन्ह लगा राणा रो ,बीदाजी दिया प्राण गवाय, चेतक भी प्राण त्याग र ,बलीचे स्यूँ सुरगाँ ने जाय। •सौ जुगाड़ अकबर लगाया ,जीत्यो गयो ना मेवाड़ी लाल, राणा स्वाभिमान कदी ना छोड़्यो ,किता भी बिछाया चाहे दुश्मन जाळ। #महाराणाप्रताप