तपती धुप में कुछ छाव सी हु बहती धारा मे ठहराव सी हू सुबह का सूरज नही रात का चाँद हू मै अल्हड़ सी कोई धुन नही संगित का ठहराव हु मैं शीतल आकाश नही मैं तपती धरती सी बेहाल हू कोई देवी सी नही मैं सीता का वो त्याग हू मैं ममता की कोई मूरत नही मैं लक्ष्मण की वो रेखा हू मैं फुलो का गुलदास्ता नही मैं काटा नुकिला हू हू अबला वी मैं हू नारी भी तेरी सोच मे लिपटी वो काली नागिन भी मै फुलो की सेज नही मैं हू तीरो की सैया सी मैं हवा नही तुफान हू मैं तो बस बदलता संसार हूँ...................