"शुभसँध्या बेला" 🙏सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़ियेगा🙏 "सिमट रहे है पंख पखेरू, अब अपने निवास की ओर, लौट रहा हैं वो मेहनतकश, शांति चाहे न अब भाये शोर, तृष्णाओं के सागर में बह रही, सुभग हो साँझ कुछ कह रही,