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सैकड़ो चेहरे एक दूसरे से अनजान बस स्टॉप पर खड़े हुए

सैकड़ो चेहरे एक दूसरे से अनजान बस स्टॉप पर खड़े हुए
पूछ रहे है कि ये बस कहाँ तक जाएगी
और जाएगी भी तो कब तक पहुंचाएगी
इस जद्दोजहद में एक बस जा चुकी है
कोई ना ये नही कोई दूसरी तो आयगी
लेकिन सच कहूँ तो गलतफहमी में है सारे
कि वो आने वाली बस उन्हें मन्ज़िल से मिलाएगी
किसी अपने की बाहें उन्हें छाती पर लिपटी पाएगी
भूल गए है कि ज़िन्दगी की मंज़िल बस मौत ही तो है
अब ये बस तो बस एक बस स्टॉप पर डेरा जमायेगी
इसी बीच एक बस का हॉर्न बजता है
कंडक्टर चिल्लाता है गन्तव्यो ने नामो को...
फिर क्या एक आपाधापी सी मचती है यात्रियों में
किसी को कोने की सीट चाहिए किसी को आगे की
बमुश्किल 2 मिनट के समय में बस भर जाती है
और ये भीड़ कंडक्टर के चेहरे पर सुकून लाती है
वो भी वहम में जी रहा है शायद अभी तक
वहम कि अब वो भी चैन से घर जाएगा
अपनी कमाई से घर को सजाएगा
बस चन्द घण्टो की ही बात तो है
आखिर वो भी सफर को अंजाम दे पाएगा।
इस ख्याली पुलाब के बीच आवाज आती है टिकट टिकट
और वो काम में लग जाता है।
बस बस चल पड़ती है कई उम्मीद लिए सवारी चढ़ती रहती है
लेकिन मंज़िल तो सबकी वही है फिर चाहे वी ड्राइवर हो या सवार
इसी बीच चालक की आंख लगती है और उसे मंज़िल दिखती है
जी हां बस टकराती है जोरो से और सारे सपने और ख्वाब बस ख्वाब बनकर रह जाते है
लोग खुद को बस बेबस और लाचार पाते है
मौत गले लगाने को आ रही होती है
ऐसे मे कुछ खिड़की तोड़कर जान बचाते है
जो भ8 हो
अब आगे लिखना मुनासिब नही होगा
क्योंकि भला एक कहानी की भी मंज़िल थोड़े ही होती है।
#काफ़िर #story
सैकड़ो चेहरे एक दूसरे से अनजान बस स्टॉप पर खड़े हुए
पूछ रहे है कि ये बस कहाँ तक जाएगी
और जाएगी भी तो कब तक पहुंचाएगी
इस जद्दोजहद में एक बस जा चुकी है
कोई ना ये नही कोई दूसरी तो आयगी
लेकिन सच कहूँ तो गलतफहमी में है सारे
कि वो आने वाली बस उन्हें मन्ज़िल से मिलाएगी
किसी अपने की बाहें उन्हें छाती पर लिपटी पाएगी
भूल गए है कि ज़िन्दगी की मंज़िल बस मौत ही तो है
अब ये बस तो बस एक बस स्टॉप पर डेरा जमायेगी
इसी बीच एक बस का हॉर्न बजता है
कंडक्टर चिल्लाता है गन्तव्यो ने नामो को...
फिर क्या एक आपाधापी सी मचती है यात्रियों में
किसी को कोने की सीट चाहिए किसी को आगे की
बमुश्किल 2 मिनट के समय में बस भर जाती है
और ये भीड़ कंडक्टर के चेहरे पर सुकून लाती है
वो भी वहम में जी रहा है शायद अभी तक
वहम कि अब वो भी चैन से घर जाएगा
अपनी कमाई से घर को सजाएगा
बस चन्द घण्टो की ही बात तो है
आखिर वो भी सफर को अंजाम दे पाएगा।
इस ख्याली पुलाब के बीच आवाज आती है टिकट टिकट
और वो काम में लग जाता है।
बस बस चल पड़ती है कई उम्मीद लिए सवारी चढ़ती रहती है
लेकिन मंज़िल तो सबकी वही है फिर चाहे वी ड्राइवर हो या सवार
इसी बीच चालक की आंख लगती है और उसे मंज़िल दिखती है
जी हां बस टकराती है जोरो से और सारे सपने और ख्वाब बस ख्वाब बनकर रह जाते है
लोग खुद को बस बेबस और लाचार पाते है
मौत गले लगाने को आ रही होती है
ऐसे मे कुछ खिड़की तोड़कर जान बचाते है
जो भ8 हो
अब आगे लिखना मुनासिब नही होगा
क्योंकि भला एक कहानी की भी मंज़िल थोड़े ही होती है।
#काफ़िर #story