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सावन महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास

सावन महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जी जन्म हुआ था। तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था। इनका विवाह रत्नावली नाम की अति सुंदर कन्या से हुआ, विवाह के बाद रामबोला गृहस्थ जीवन और पत्नी के प्रेम में ऐसे डूबे की उन्हें दुनिया-जहान और लोक मर्यादा का होश ही नहीं रहा।

एक बार इनकी पत्नी मायके आईं तो कुछ समय बाद ही यह बेचैन हो उठे और पत्नी से मिलने चल पड़े,रास्ते में तेज बरसात होने लगी फिर भी इनके कदम नहीं रुके और लगातार चलते हुए नदी तट पर पहुंच गए।

सामने उफनती हुई नदी थी लेकिन मिलन की ऐसी दीवानगी छाई हुई थी कि नदी में बहकर आती लाश को पकड़कर नदी पार कर गए, देर रात जब पत्नी के घर पहुंचे तो सभी लोग सो चुके थे- घर का दरवाजा भी बंद हो चुका था।

तुलसी जी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पत्नी के कक्ष तक पहुंचा जाए,तभी सामने खिड़की से लटकती रस्सी जानकर सांप का पूंछ पकड़ लिया और इसी के सहारे पत्नी के कक्ष तक पहुंच गए।

पत्नी ने जब रामबोला को विक्षिप्त हालात में अपने पास आया देखा तो अनादर करते हुए कहा कि-
‘अस्थि चर्म मय देह यह,ता सों ऐसी प्रीति 
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।’ 
यानी इस हाड मांस की देह से इतना प्रेम, अगर इतना प्रेम राम से होता तो जीवन सुधर जाता,’ पत्नी का इतना कहना था कि रामबोला का अंतर्मन जग उठा और वह एक पल भी वहां रुके बिना राम की तलाश में चल दिए और राम से ऐसी प्रीत लगी कि जहां भी रामकथा होती है वहां राम के साथ तुलसीदास जी का भी नाम लिया जाता है।
🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' तुलसीदास
सावन महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जी जन्म हुआ था। तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था। इनका विवाह रत्नावली नाम की अति सुंदर कन्या से हुआ, विवाह के बाद रामबोला गृहस्थ जीवन और पत्नी के प्रेम में ऐसे डूबे की उन्हें दुनिया-जहान और लोक मर्यादा का होश ही नहीं रहा।

एक बार इनकी पत्नी मायके आईं तो कुछ समय बाद ही यह बेचैन हो उठे और पत्नी से मिलने चल पड़े,रास्ते में तेज बरसात होने लगी फिर भी इनके कदम नहीं रुके और लगातार चलते हुए नदी तट पर पहुंच गए।

सामने उफनती हुई नदी थी लेकिन मिलन की ऐसी दीवानगी छाई हुई थी कि नदी में बहकर आती लाश को पकड़कर नदी पार कर गए, देर रात जब पत्नी के घर पहुंचे तो सभी लोग सो चुके थे- घर का दरवाजा भी बंद हो चुका था।

तुलसी जी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पत्नी के कक्ष तक पहुंचा जाए,तभी सामने खिड़की से लटकती रस्सी जानकर सांप का पूंछ पकड़ लिया और इसी के सहारे पत्नी के कक्ष तक पहुंच गए।

पत्नी ने जब रामबोला को विक्षिप्त हालात में अपने पास आया देखा तो अनादर करते हुए कहा कि-
‘अस्थि चर्म मय देह यह,ता सों ऐसी प्रीति 
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।’ 
यानी इस हाड मांस की देह से इतना प्रेम, अगर इतना प्रेम राम से होता तो जीवन सुधर जाता,’ पत्नी का इतना कहना था कि रामबोला का अंतर्मन जग उठा और वह एक पल भी वहां रुके बिना राम की तलाश में चल दिए और राम से ऐसी प्रीत लगी कि जहां भी रामकथा होती है वहां राम के साथ तुलसीदास जी का भी नाम लिया जाता है।
🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' तुलसीदास