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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानम

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || ७ ||
(Bhagwadgeeta 4.7)
भावार्थ
हे भारतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है 
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ |
  

 तात्पर्य

यहाँ पर सृजामि शब्द महत्त्वपूर्ण है | 
सृजामि सृष्टि के अर्थ में नहीं प्रयुक्त हो सकता, 
क्योंकि पिछले श्लोक के अनुसार भगवान् के स्वरूप
 या शरीर की सृष्टि नहीं होती, क्योंकि उनके सारे स्वरूप 
शाश्र्वत रूप से विद्यमान रहने वाले हैं | 
अतः सृजामि का अर्थ है कि भगवान् स्वयं यथारूप प्रकट होते  हैं happy janmashtami
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || ७ ||
(Bhagwadgeeta 4.7)
भावार्थ
हे भारतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है 
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ |
  

 तात्पर्य

यहाँ पर सृजामि शब्द महत्त्वपूर्ण है | 
सृजामि सृष्टि के अर्थ में नहीं प्रयुक्त हो सकता, 
क्योंकि पिछले श्लोक के अनुसार भगवान् के स्वरूप
 या शरीर की सृष्टि नहीं होती, क्योंकि उनके सारे स्वरूप 
शाश्र्वत रूप से विद्यमान रहने वाले हैं | 
अतः सृजामि का अर्थ है कि भगवान् स्वयं यथारूप प्रकट होते  हैं happy janmashtami