गूंज रही अब तक कानों में , चीखें उस नरसंहार की। वैशाखी के च चढ़ते चांद पर, गुजरी उस हत्या कांड की। 13 अप्रैल 1919 को चढ़ रहा , जब सूरज का पहरा था। लोगों के चेहरे पर बैठा, वो तो खुशी का सहरा था। पहरे में ना दिखा किसी को, काला रंग सुनहरा था। कायर डायर वहां आ गया, अपनी कायरता दिखलाने को। चलवा गोलियां मासूमों पर, लहू की गंगा बहा दिया। सोच के हिल जाती हूं मैं, कैसा वो भीषण मंजर था। 101 साले उसको बीत गई, जख्म अभी भी गहरा है। ना भूले हैं ना भूलेंगे, ये भारत माता से वादा है। जय हिन्द । जहान्वी वर्मा धन्यवाद। #जलियाबाग# गूंज रही अब तक ...