अजी हुजूर, कुछ रिश्ते मै भी निभा लेती हूँ, खुद से खुद की मोहब्बत भी जता लेती हूँ। जब क़भी फुरसत मिल जाती है , भागमभाग से, खुशमिजाजी से अल्फाज़ो को सजा लेती हूँ। अजी हुजूर, कुछ रिश्ते मै भी निभा लेती हूँ, खुद से खुद की मोहब्बत भी जता लेती हूँ। जब क़भी फुरसत मिल जाती है भागमभाग से, खुशमिजाजी से अल्फाज़ो को सजा लेती हूँ। बहुत कुछ तो नहीं जानती मै, बस अपनी नादानियों पर जरा सा मुँह फुला लेती हूँ,