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बातों को वह पत्थरों की तरह समेटती और पूरा का पूरा

बातों को वह पत्थरों की तरह समेटती और पूरा का पूरा पहाड़ खड़ा करती लेकिन उस पहाड़ की चोटी पर वह कभी नहीं गईं । बस एक बिरला कवि था जो साँझ होते-होते वहाँ बैठकर अपनी प्रेमिका की याद में रुदावलियाँ गाता था और उस लकड़ी में बँधे तारों की झंकार से पहाड़ को हिलाकर नदी में लहरें पैदा करता था । ये हिलोरें किनारों को कपकपा देती थी ।वह अपनी धुन में गाता साँझ के ढलते-ढलते वापस लौट जाता लेकिन वे हिलोरें उसको रात भर जगाए रखती  जिंदगी और मौत के बीच बचाए रखती।
  _सुनील चौधरी #कुछ विचार
बातों को वह पत्थरों की तरह समेटती और पूरा का पूरा पहाड़ खड़ा करती लेकिन उस पहाड़ की चोटी पर वह कभी नहीं गईं । बस एक बिरला कवि था जो साँझ होते-होते वहाँ बैठकर अपनी प्रेमिका की याद में रुदावलियाँ गाता था और उस लकड़ी में बँधे तारों की झंकार से पहाड़ को हिलाकर नदी में लहरें पैदा करता था । ये हिलोरें किनारों को कपकपा देती थी ।वह अपनी धुन में गाता साँझ के ढलते-ढलते वापस लौट जाता लेकिन वे हिलोरें उसको रात भर जगाए रखती  जिंदगी और मौत के बीच बचाए रखती।
  _सुनील चौधरी #कुछ विचार
sunilchaudhary6891

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