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Time... शेष अनुशीर्षक में पढ़.. आशिर्वाद दे आज ही

Time...

शेष अनुशीर्षक में पढ़.. आशिर्वाद दे आज ही के दिन बंदा कुर्बान हुआ था...
 
अंजान थीं तुम.. मैं भी कहां जानता था तुमहें
दो शख़्स मिले दर्मियां कुछ बातें हुई..एक निर्णय हुआ.. 
मेरा तुम्हारा गठबंधन होना उसी वक्त निश्चित हुआ...
मुझमें भी मुखर हो अपने विचार रखने की कहां स्वतंत्रता थी
फिर तुम तो क़स्बा नुमा शहर के एक परंपरा पोशी परिवार में पली बड़ी थी..
मां बाप का निर्णय ही सर्वोपरि होता था
बच्चे तो दराज में रखे रबर स्टांप से ज्यादा कोई हैसियत ना रखते थे..
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शेष अनुशीर्षक में पढ़.. आशिर्वाद दे आज ही के दिन बंदा कुर्बान हुआ था...
 
अंजान थीं तुम.. मैं भी कहां जानता था तुमहें
दो शख़्स मिले दर्मियां कुछ बातें हुई..एक निर्णय हुआ.. 
मेरा तुम्हारा गठबंधन होना उसी वक्त निश्चित हुआ...
मुझमें भी मुखर हो अपने विचार रखने की कहां स्वतंत्रता थी
फिर तुम तो क़स्बा नुमा शहर के एक परंपरा पोशी परिवार में पली बड़ी थी..
मां बाप का निर्णय ही सर्वोपरि होता था
बच्चे तो दराज में रखे रबर स्टांप से ज्यादा कोई हैसियत ना रखते थे..